"अनंत ब्रम्हांड"
"अनंत "जिसका कोई अंत नही "ब्रम्हांड" कल्पना का वो शाश्वत स्वरूप जिसमे जीवन के आयाम जुड़े है जीवन का रहस्य कोई नही जानता "मृत्यु "से बड़ा सत्य जीवन में दूसरा कुछ नही ,वही जीवन के प्रति हमारा संघर्ष नित नयी मुसीबतों से गुजर रहा है l ये जीवन हमें क्यो मिला इस जीवन का रहस्य क्या है ? ये जानना उतना ही आवश्यक है ,जितना की हमारा इस वर्तमान मे होना इस सृष्टी के लिए माने रखता है l " सत्य " तो ये है की प्रत्यक्ष देवता ' सूर्य ' के सिवाय कोई नही, जिसे हम खुली आँख से देख सके l ये वही "दिव्या 'स्त्रोत है ,जिससे ये सृष्टी देदीप्यमान है l जो "अनंत ब्रम्हांड "का नियामक है l हमारा शरीर वो 'अन्तर ब्रम्हांडीय पिंड' है जो प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से इस अनंत ब्रम्हांड का प्रतिनिधित्व कर रहा है l काल चक्र का प्रत्येक पल अपने आप मे दिव्यता लिए हुए है l हम वर्तमान मे है, यही हमारे जीवन का सत्य है l काल के संकेतो से अनभिज्ञ हम अपने अस्तित्व पर गौर करे, तो हम देश काल परिस्थिति के अनुरूप, अपने आप, को अपने ढंग से जीने को ही सर्वोपरि मानते है l हमारे इस बोद्धिक निर्णय में एक पल ऐसा जरुर आता है ,जहा हमारे हित -अहित, पाप -पुण्य ,धर्म- अधर्म ,अच्छई -बुराई आदि व्यवहार का स्मरण होने पर हमारे दोनों हाथ उस "सूक्ष्म सत्ता" के सामने झुक ही जाते है l वास्तव में मनुष्य के कार्य साधन का निर्णय 'काल 'चक्र ने पहले ही तय कर रखा है l जो देविक संकेत के रूप में "तरंग मध्यम " से हमारे चारो ओर व्याप्त है, इन संकेतो को मानकर किस तरह जीवन में आनंद ओंर सफलता प्राप्त किया जा सकता है l इसे समझना होगा हमारा ज्योतिष शास्त्र इन्ही संकेतो पर आधरित है l प्राचीन मनीषियों द्वारा प्रकृति के बहुत करीब रह कर अपने आत्मज्ञान द्वारा काल के इन्ही दिव्य संकेतो का दर्शन ओर सतत चिंतन का आधार ही मानव जीवन को संस्कारित ओर संरक्षित किए हुए है l ऋषि मुनियों ने प्रकृति के बहुत करीब रह कर इनके रह्श्यो का दर्शन किया तथा अपने आत्म चिंतन द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त किए l यही आत्मीया एवं अध्यात्मिक ज्ञान हमें वेदा पुराण एवम उपनिषद के रूप में प्राप्त हुआ है l आज भी हमें इन ऋचाओ को जानने की आवश्यकता है की वेदों को किस प्रकार से मानव जीवन में उतारा जाये l
आत्म ज्ञान का मुख्य आधार वेद रहा जो श्री ब्रम्हा मुख से उच्चारित हुआ हैl वेदों में जो ज्ञान है वो पूर्णतः प्रकृति प्रार्थना पूर्वक है l जिसको समझ पाना आज कठिन होगा l कालांतरमें सरलतम शोध होते रहे, पर उन वाणी संग्रह को जीवन में उतरने की कल्पना मात्र रही है l वेद जब ज्ञान से परे हो गया तो उसे समझाने हमारे भारतीय ऋषियों ने उपनिषद की रचना की जो १०८ हुए l उपनिषद कोई ज्ञान की कुंजी नही जिसे पढ़ कर ज्ञानवन विद्वान् हो जाए या मेधा शक्ति का उदय हो जाए ,समय समय पर हमारे गुरुजनों एवं ऋषि मुनियों ने अपने शिष्यों के बीच समाधान हेतु अपने शाब्दिक अर्थ से स्पष्ट किया की ज्ञानी के परम ज्ञान को प्राप्त करना है तो आपको उपनिषद होना होगा अर्थात" गुरु के समीप बैठना होगा "तभी आप वास्तविक ज्ञान को समझ सकते है l
उपनिषदों के अध्यन मात्र से ज्ञान प्राप्त होना सम्भव नही है ,तब शास्त्रों की रचना हुयी जो ६ हुए l उनमेसे एक हमारा 'ज्योतिष 'शास्त्र है जिसका उल्लेख ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में है l और अंत में व्याकरण हुए, जिसकी व्याख्या करने वाले कई मीलेगे किंतु इन शास्त्रों के मूल तत्वों को समझने और समझाने वाले विरले ही होंगे l आज हमे उस मूल को समझना होगा, उस शुन्य को समझना होगा जिसे ब्रम्हांड अर्थात" अनंत ब्रम्हांड "कहा जाता है !
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