Tuesday, 31 July 2012

बजरंग-बाण


                                  बजरंग-बाण         
               दोहा

           निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
           तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
                    'चौपाई'

         जय हनुमंत संत हितकारी  । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
         जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

         जैसे कूदि सिंधु महिपारा   । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
         आगे जाय लंकिनी रोका   । मारेहु लात गई सुरलोका॥

         जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
         बाग उजारि सिंधु महँ बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा॥

         अक्षय कुमार मारि संहारा  । लूम लपेटि लंक को जारा॥
         लाह समान लंक जरि गई  । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

         अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
         जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

         जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
         ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

         ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
         जय अंजनि कुमार बलवंता  । शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

         बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
         भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर । अगिन बेताल काल मारी मर॥

         इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
         सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

         जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
         पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

         बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
         जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

         जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
         चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

         उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
         ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

         ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
         अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

         यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
         पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

         यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
         धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
                    दोहा
         उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
         बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
         कुछ संस्करणों में उपरोक्त दोहा "उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै"
         के स्थान पर निम्न प्रकार से है।

         प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।
         तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान॥

Monday, 30 July 2012

मंगल स्तोत्र


कष्ट विमोचन मंगल स्तोत्र
मंगल देवताओं का सेनापति है!
मंगल ग्रह मनुष्य मे साहस, वीरता, पराक्रम एवम शक्ति का कारक है !
इस ग्रह के यदि शुभ प्रभाव हों तो जातक नेत्रत्व करने वाला परक्रमी होता है !
यदि मंगल अशुभकारक हो तो फ़ोडा, ज्वर, मष्तिष्क ज्वर, अल्सर आदि रोग प्रदान करता है !
मंगल के अशुभ प्रभाव से जातक क्रोध तथा आवेश में अपने जीवन मे अशान्ति स्थापित
करता है ! मंगल के अशुभ प्रभाव वश दुर्घटनाएं आदि भी होती रहती है !
श्री स्कन्द पुराण में वर्णित मंगल स्त्रोत का नित्य श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से मंगल के
अशुभ प्रभावों से मुक्ति एवम शुभ प्रभाव की ब्रद्धि होती है ! 

!! कष्ट विमोचन मंगल स्तोत्र !!

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद: !
स्थिरामनो महाकाय: सर्वकर्मविरोधक: !!

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां। कृपाकरं!
वैरात्मज: कुजौ भौमो भूतिदो भूमिनंदन:!!

धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्!
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्!!

अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:!
वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:!!

एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्!
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्रुयात् !!

स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:!
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्!!

अंगारको महाभाग भगवन्भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय:!!

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यव:!
भयक्लेश मनस्तापा: नश्यन्तु मम सर्वदा!!

अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्तजितात्मन:!
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्!!

विरञ्चि शक्रादिविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा!
तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल:!!

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:!
ऋणदारिद्रयं दु:खेन शत्रुणां च भयात्तत:!!

एभिद्र्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्!
महतीं श्रियमाप्रोति ह्यपरा धनदो युवा:!!

!! इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्त ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम् !!