Sunday, 24 June 2012

श्री ज्ञान चालीसा

           श्री ज्ञान चालीसा
पानी पीवे छान कर, जीव जन्तु बच जाय !
जीव दया अति पुण्य हैं, रोग निकट नहि आय !!
झूठे पुरुषो से कभी, कोई न करता प्रीत!
सच्चे आदर पाते है, जग जस लेते जीत !!
चोर नित्य चोरी करे, रहे न कुछ भी पास !
वनों पहाड़ो भागते, दुःख पावे दिन रात !!
सेय पराई नार को, तन मन धन को खोत !
फिर भी सुख मिला नहीं, मेरे भयानक मौत !!
जोड़ जोड़ संचय करे, परिग्रह अपरम्पार !
कितने दिन है जीवना , क्यों नित ढोते भार!!
कुटुम्ब मोह का जाल है, कोई न जावे साथ!
भला बुरा जो कर गया, बनी रहेगी गाथ !!
बीड़ी मदिरा पीवना , नहीं भलो का काम !
भंग आदि की लत बुरी, क्यों होते बदनाम !!
रोगी तन को ठीक कर, ब्रह्मचर्य को पाल !
बिन पैसों की यह दवा , दूर भगावे काल !!
मरा कौन सब पूछते, पुंछ भुलाते बात !
चाल चूक शतरंज की, हो जाती है मात !!
सुख दुःख नित ही देखते, क्यों न लगावे ध्यान !
चिन्ता को अब छोड़कर, धारो सम्यक ज्ञान !!
कितने दिन का जीवना, कितने दिन की चाह !
ज्ञानी लेखा सोचले, मौलिक जीवन चाह !!
ऊपर से धर्मी बने, भीतर शुद्ध न एक !
रात दिवस ठगते फिरत, किस विधि रहती टेक !!
कारज को करते चलो, तन मन बस में राख !
होगी निश्चय ही विजय, आफत आये लाख !!
पाप अनेको ही किये, मुक्ति किस विधि होय !
छुटेंगे जंजाल सब, पाप मैल सब धोय !!
झूठे स्वार्थ को छोडकर, सत को उर में धार !
इस भव में शोभा बढे , आगे बेडा पार !!
पहले निज हो शुद्ध कर, पीछे पर उपदेश !
जो कहते करते नहीं, वे पाते हैं क्लेश !!
भीतर देह घिनावनी, हैं रोगों का धाम !
जब तक परदा ठीक है, करले अपना काम !!
देख बुदापे की दशा, थर थर कापे गात !
बड़े बुरे दिन बीतते , कोई न पूछे बात !!
पता किसी को न पड़े, कब आयेगा काल !
क्यों माया में उलझता, हैं मकड़ी का जाल !!
क्यों आया क्या कर गया, ज्ञानी पूछे बात !
लेखा कैसे देयगा , क्या तो जाता साथ !!
पापी तू तिर जाएगा, निश्चय ही यह मान !
पीछे की मत याद कर, आतम को पहचान !!
आये वो सब जायेंगे जग की यह हैं रीत !
थोड़े स्वार्थ कारने, क्यों नित गाये गीत !!
चाहे कितना हो भला, सुख दुःख का नहीं मेल !
कब के दुःख कब आपडे , देख जगत का खेल !!
रोग न छोड़े किसी को, पापी हो या सन्त !
इससे बचने के लिए, पकड़ो आत्म पन्थ !!
घूम रहा संसार में, कर कर उल्टी बात !
अभ भी चेतन सोचले, तज पुदगल का साथ !!
धर्मशाला दिन तीन की, नए मुसाफिर आत !
तू कब तक रह पायेगा, सोच ज्ञान की बात !!
नाम जगत में करन को, रूपये खर्चे लाख !
सच्ची सेवा के बिना, जम न सकेगी साख !!
मुर्ख ! जवानी जोर में, किये पाप बहुघोर !
अब भी चेतन चेतजा , विषय धर्म के चोर !!
बीती ताहि विसार दे, आगे की सुध लेय !
प्याला विष का छोड़कर, आत्म अमृत गेह !!
जीना मरना एकसा , मनुष्य जन्म को पाय !
आकर कुछ भी न किया, झूठा रुदन मचाय !!
गन्धक में पारा मिला, तपे पृथक हो जाय !
इसी तरह ही आत्मा, तन जड़ से हट जाय!!
क्रोध, कसाई हैं बुरा, समझो इसको आप !
मिनटों में झट मारता, गिने न माँ अरु बाप !!
शास्त्र अनेको ही सुने, दिया न असली ध्यान !
पोथी पढ़ पढ़ रह गये , उर में हुवा न ज्ञान !!
न्यारे न्यारे पन्थ हैं, जिनकी करते बात !
सत कोई नहि खोलता, मारग कैसे पात !!
अहंकार के कारने, लड़ते दिन अरु रात !
घर को नरक बना दिया, फिर भी छुटी न बात !!
लक्ष्मी चंचल है अति, सदा न रहती साथ !
दान न कोडी कर सका, जाता खाली हाथ !!
सेवा जननी जनक को, तीरथघर माही !
क्यों जग में खोजत फिरो, कल्प तरु की छाये !!
पुन्य चीज़ कुछ ओर हैं, धर्म चीज़ कुछ ओर !
पुन्य जगत का खेल हैं, धर्म मोक्ष की ठोर !!
होनी है सो होयेगी , मन में धीरज धार !
झूठा शगुन विचारता, क्या पावेगा पार !!
इससे बचने के लिए, छोड़ो पर की आस !
आत्म बल सबसे बड़ा, सदा तुम्हारे पास !!

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